महिला सरपंचों की भूमिका पर अंजू कुमारी दिवाकर ने पीएचडी किया…
महिला सरपंचों की भूमिका पर अंजू कुमारी दिवाकर ने पीएचडी किया…
कोरबा -13 अप्रैल 2024(कोरबा सुपरफास्ट) आईएसबीएम विश्वविद्यालय नवापारा-कोसमी,छुरा जिला गरियाबंद छत्तीसगढ़ के कला एवं मानविकी संकाय के अंतर्गत राजनीति विज्ञान विभाग में डॉ भूपेंद्र कुमार साहू के निर्देशन में शोधार्थी अंजू कुमारी दिवाकर ने *ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में महिला सरपंचों की भूमिका* छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा जिले के विशेष संदर्भ में सन् 2015-2020 तक के महिला सरपंचों के कार्यो का अध्ययन एवं विश्लेषण कर अपना शोध कार्य पूर्ण किया।शोधार्थी अंजू कुमारी दिवाकर ने बताया कि कोरोना महामारी के समय में शोध कार्य पूर्ण किया है।इसके लिए भारतीय ग्रामीण व्यवस्था एवं पंचायती राज व्यवस्था का गहराई से अध्ययन किया गया।साथ ही कोरबा जिले के 390 ग्राम पंचायतों में से 226 महिला सरपंचों वाली पांच विकासखण्ड में से प्रत्येक विकासखण्ड के 20-20 महिला सरपंचों वाली पंचायतों की महिला सरपंचों का प्रश्नावली के माध्यम से अध्ययन किया गया।अधिकांश पंचायतों में आदिवासी महिला सरपंच है। अधिकांश सरपंचों की शैक्षणिक योग्यता स्कूल शिक्षा है।यह जरूर है कि पचास प्रतिशत से भी अधिक महिला सरपंच युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं।इनमें से अधिकांश महिला सरपंचों का मानना है कि जनप्रतिनिधियों के लिए शैक्षणिक योग्यता से ज्यादा अनुभव और कार्य करने की इच्छा शक्ति महत्वपूर्ण है। अधिकांश सरपंचों का मानना है कि पंचायत चुनाव में धन और पद के दुरुपयोग पर रोक लगाई जाए।लगभग 80 प्रतिशत महिला सरपंचों ने माना कि उन्होंने अपने पद से संबंधित दायित्वों को पूरा करने में सफल हुए हैं।साथ ही मानते हैं कि,पंचायत संबंधित दायित्वों को पूरा करने में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।50 प्रतिशत सरपंचों का मानना है कि उच्च अधिकारियों का व्यवहार सहयोगात्मक होता है।कम शिक्षित महिला सरपंच जानकारी के अभाव में उच्च अधिकारियों से बात करने से कतराते हैं।महात्मा गांधी के आदर्शो को ध्यान में रखते हुए, पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम सभा का आयोजन सुनिश्चित किया गया है।अधिकांश सरपंचों का मानना है कि ग्राम सभा के आयोजन महज खानापूर्ति है। होता वही है जो पंचायत चाहतीं हैं।ग्राम सभा में सकारात्मक चर्चा के बजाय शोरगुल ज्यादा होती है।देश भर में अधिकांश महिला जनप्रतिनिधियों की पहचान उनके पति,पिता या भाई से जुड़े होते हैं, ऐसे में पंचायत के कार्य में सरपंच पति की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।हांलांकि आधे महिला सरपंच इस बात से इंकार करते हैं,लेकिन मानते हैं कि महिला सरपंचों वाली पंचायतों में सरपंच पति की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।समय -समय पर हमें पंचायतों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले सुनाई देती है।इस पर आधे से भी कम महिला सरपंच इस बात को स्वीकार किया।लेकिन दबी जुबान अधिकांश महिला सरपंचों ने माना कि पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार होता है।महिला सरपंचों का मानना है कि केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा पंचायतों के विकास के लिए पर्याप्त राशि उपलब्ध कराई जाती है लेकिन जानकारी के अभाव और प्रशासनिक जटिलताओं के चलते विकास कार्य पूर्ण नहीं हो पाती।महिला सरपंचों की भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए शोधार्थी ने सुझाव दिया है कि, महिला जनप्रतिनिधियों के लिए समय-समय पर आवश्यक प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर उन्हें सरकारी योजनाओं से संबंधित जानकारी प्रदान किया जाए,ताकि प्रशासनिक अधिकारीयों और कर्मचारियों के प्रति निर्भरता कम हो।योजनाओं के निर्माण एवं क्रियान्वयन में महिला सरपंचों की भूमिका बढ़ाई जाए।ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा की पहुंच सुलभ हो।भ्रष्टाचार पर त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए। सरपंचों पतियों की भूमिका की रोकथाम के लिए कानून बने। सक्रिय राजनीति में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाली महिला जनप्रतिनिधियों के प्रति पुरुष प्रधान समाज का नजरिया सदैव ही नकारात्मक रहा है।ऐसे नजरिया को बदलने के लिए सामाजिक सुधार और महिलाओं को और अधिक सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता है। निश्चित रूप से महिला सरपंचों को कार्य करने के लिए स्वतंत्र वातावरण मिले तो ग्रामीण विकास का कायापलट हो सकता है।शोध कार्य के मूल्यांकन हेतु बाह्य परीक्षक के रूप में दुर्गा महाविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ के राजनीति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ सुभाष चंद्राकर उपस्थित थे।विषय विशेषज्ञ ने शोध प्रबंध की तारीफ करते हुए कहा कि शोध प्रबंध में पंचायती राज व्यवस्था एवं महिला सरपंचों की भूमिका के सभी पक्षों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया गया।शोधार्थी अंजू कुमारी दिवाकर द्वारा किए गए शोध कार्य के लिए विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ विनय एम अग्रवाल,कुलपति डॉ आनंद महलवार,कुलसचिव डॉ बी पी भोल,संयुक्त कुलसचिव डॉ रानी झा,अकादमिक अधिष्ठाता डॉ एन कुमार स्वामी,छात्र कल्याण अधिष्ठाता डॉ संदीप साहू,कला एवं मानविकी संकाय की विभागाध्यक्ष डॉ गरिमा दिवान,शोध केंद्र प्रमुख डॉ डायमंड साहू,राष्ट्रीय सेवा योजना कार्यक्रम अधिकारी डॉ प्रीतम साहू एवं अश्विनी साहू ने बधाई देते हुए उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी।शोधार्थी अंजू कुमारी दिवाकर ने उक्त उपलब्धि का श्रेय अपने शोध निर्देशक डॉ भूपेंद्र कुमार साहू,शिक्षाविद् डॉ अविनाश कुमार लाल,डॉ संजय कुमार,डॉ अब्दुल सत्तार,श्री जफर अली,सुमित कुमार बेनर्जी,नीधि सिंह,नरेश चंद्राकर, सीमा बेनर्जी,डॉ दुर्गा चंद्राकर, आदिलक्ष्मी तिवारी,प्रीति जायसवाल,कुमकुम गुलहरे को दिया।साथ ही सभी परिस्थितियों में सहयोग करने के लिए अपने पति मोहन कुमार दिवाकर,ससूर रामधन दिवाकर,सासू मां सोनी दिवाकर,पिता डॉ सुकदेव प्रसाद मधुकर,माता लकेश्वरी मधुकर तथा अपने दोनों पुत्र अभिराज और अव्यान के प्रति आभार व्यक्त किया।
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